Wednesday, January 7, 2015

धूप

मरहूम इरादे हैं कुछ,
कुछ कतरे अरमानों के,
उधड़े टाँके कुछ हैं,
कुछ अफ़सोस भी बाकी हैं...

सूख चुके हैं सब,
यतीम से लव्ज़ कुछ,
कुछ बेलव्ज़ सी बात-चीत,
रूठी सी किस्मत और चारपाई  के किनार पे बैठी मोहब्बत

आज मौका बड़ा अच्छा है,
रात कुछ ज़्यादा सर्द है, कोहरा कुछ ज़्यादा घना है...
पीछे चौक में सब रखा है तैयार कर-कर,
आज इनकी ही तापनी करते हैं...कुछ आग सेकते हैं.

सेहर होगी उसी ताप से...एक नई सेहर...
मूढ़ों पर बैठे वहीँ, सुबह की धूप भी सेकेंगे.
खुश्क धूप...एक नई सुबह की कोसी सी धूप.