Tuesday, January 10, 2012

ख़ुश्बू

मेरा घर तेरी ख़ुश्बू पे ज़िन्दा है...
सांस लेता है...तभी तो जीता है...

तुम्हारी साँसों की ख़ुशबू
तुम्हारी आहों की ख़ुशबू
कभी ज़िद ... कभी तपिश की ख़ुश्बू

तुम्हारे ख़्वाबों की ख़ुश्बू
तुम्हारी राहों की ख़ुश्बू,
कभी कोशिश ... कभी जुस्से की ख़ुश्बू

तुम्हारी मोहोब्त की ख़ुश्बू,
तुम्हारी मस्ती की ख़ुश्बू,
कभी ख़ाहिश ... कभी तकलीफ की ख़ुश्बू

रात रानी की बेल चढ़ते चढ़ते
खिड़की तक मेरे पोंहोंच गई है
तुमसी ही तो लगती है हर रात...हर फूल की ख़ुश्बू

तुम्हारे इतर की होती है वो ख़ुश्बू
तुम्हारा पीछा करती वो भीनी सी ख़ुश्बू
मेरे कमरे को भरती...तुम्हारी वो ख़ुश्बू.

मैं तेरी ख़ुश्बू पे ज़िन्दा हूँ...
सांस लेती हूँ ...तभी तो जीती हूँ