ले दे के कुछ बाकि बचा है तो बस ... सिलवटें
गुज़रे कल की सिलवटें
बीती रात की सिलवटें
एक उम्र भर लम्बी...
एक दुसरे में उलझी हुई, लिपटी हुई सिलवटें
मेरे माथे पे बिखरी झुल्फों सी ये सिलवटें
कंधों पे ढोए बोझ की सबब वो सिलवटें
हाथों पे कभी दौड़ती, कभी रेंगती ये सिलवटें
मुक्कदर को मेरे अपने साथ भागाती, कभी खींचती हुई सिलवटें
कुछ यादों की सिलवटें
कुछ मुलाकातों की सिलवटें
कुछ खोए पलों की...कुछ रौंदे अरमानों की सिलवटें
कभी मनचले से मन पर भी मिली हैं, कुछ खामोश पड़ी सिलवटें
क़बिलित की कुछ, कुछ हार की थी उसमे सिलवटें
कुछ तकरार की और कुछ बेशुमार प्यार की सिलवटें
हाथ से झाड कर, खिंच कर कोशिश भी की थी...
नहीं जाती मेरे नाम के पन्ने में दबी हुई ये सिलवटें
चुप- चाप से आज कल
मेरी पुरानी अलमारी के कांच तक पहुँच गईं हैं ये सिलवटें
ताकती हैं ये मुझको...घूरती नहीं...
गुज़ारे ज़मानों की याद... ये सायानी सी सिलवटें...
ले दे के कुछ बाकि बचा है तो बस ...
मेरे चेहरे कि सिलवटें
मेरे तजुर्बे की सिलवटें.
wah wah maza aa gaya
ReplyDeleteThank you Jitesh!
Deletesuper super like...
ReplyDeleteThank you nandini for your encouragement.
Deleteloved it
ReplyDeletesuper like vasu
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