ख़ुश्बू फ़िज़ा में एक घुली सी,
धुंद नज़र में कुछ जमी सी है,
बूंदें टपकी हैं पलकों से गलों पर,
आँख नम है, पर उदास नहीं,
पेशानी को चूमती है, कभी रूह को भीगती है
हाथों की लकीरों को सोकति,
पगडंडी हो कोई जैसे गीली सी एक नदी किनारे,
महकति ये हवा झोंकों में कुछ बोलती है,
गुच्छे गुलमोहर के लटकते हैं कंही, कंही ग़ुलाबी सी चादर है बोगन की
कई बार ज़हन में ख्याल आता है ये,
पहली बारिश है ये, या महोब्बत तुम्हारी,
तार-तार भिगति
बूंद-बूंद महकती