Wednesday, November 4, 2009

कल ही की बात है, है ना...
खुदसे खवा,
अपने आप से लड़ते,
उस अकेली राह पर, तनहा यूँही चल पड़े थे...
एक नज़र पलट कर देखा तोह होता...
मेरा बढाया हाथ थमा तो होती,

हर बढ़ते कदम से ज़मी को नापना इतना मुश्किल न लगता...

5 comments:

  1. और बेहतर कोशिश की शुभकामना।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. बहुत ही अच्‍छा एवं सराहनीय प्रयास,
    हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और शुभकामनायें
    कृपया अन्य ब्लॉगों पर भी जाकर अपने अमूल्य
    विचार व्यक्त करें

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  3. Thank you so much all of you for the words of encouragement!

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