कभी लफ्ज़ कम पड़ जाते हैं
तो कभी नज़रों की कही पढनी मुश्किल I
माथे की शिकंज, कासके बंद करी मुट्ठी
तो कभी शोर मचाती चुप्पी
नाख़ून को दांत से कुरेदते भी मैं तुम्हे देखा था...
ख़फ़ा रहने के अंदाज़ बड़े हैं और दिखाने को तेवर कई...
जवाब में एक गुस्से का साथ था,
तो कमज़र्फ गुस्सा भी आंसू बनके हवा हो जाता है
No comments:
Post a Comment