Essence of me
Wednesday, August 31, 2011
ख़ुद को भूलूं तो कुछ याद रहे...
ख़ुद को भूलूं तो कुछ याद रहे...
ये कम्बक्त ज़िन्दगी इतनी भी परेशां न रहे
मै से मौला कि ये दुरी भी इसी वजह से है...
माशूक के लिए मोहोबत भी तो ज़रा फीकी सी है...
मै कि पहचान कभी नई...कभी पुरानी रहे...
ख़ुद को भूलूं तो कुछ याद रहे...
ये कम्बक्त ज़िन्दगी इतनी भी परेशां न रहे
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