Sunday, February 5, 2012

फिर...

वो शाम आज फिर आई थी,
पूछ ती थी मुझसे,
"क्या ढूंढ़ रही हो तुम....?"
एक साया, एक परछाई जो किसी हमसफ़र तक ले चले

वो सर्दी कि धुप आज फिर निकली थी,
पूछ ती थी मुझसे,
"कोहरा कुछ याद दिलाता है...?"
क्या कहूँ, नजदीकियां, वो ठण्ड में ठिठुरना, सब सपने सा लगता है

ओंस पत्तों पर आज फिर देखि थी,
पूछती थी मुझसे,
"आंसू कितने बहाए...?"
नहीं!...आँख मॉल कर जवाब दिया पर गला भर ही आया था

वो हिलती बेंच आज फिर ढुंढी थी,
पूछती थी मुझसे,
"आज यंहां कैसे...क्या कोई...?"
वन्ही बैठ कर, तुम्हे सोच कर, जाने जाने कितने सवाल मैंने

गुज़री उस रासते से आज फिर थी,
पूछता था मुझसे,
"कदम उठाओ, बढ़ना नहीं है क्या...?"
सहमा मन, कि एक हमराही हाथ थमे चलता तो आसां होता.

वो हवा छू कर आज फिर गई थी,
पूछती थी मुझसे,
"कन्हन गई वो हंसी...वोह शर्म...?"
मुस्कुराई, तो ये आँख भर आई...हवा ने स्संभाला, आंसूं पोंछा, और फिर उड़ गई

वो तस्वीर आज फिर निकली कहीं से,
पूछती थी मुझसे,
"सब बदल गया है क्या...?"
सच, बदल ही तो गया है सब कुछ...सोचा तो याद आया, नहीं! मैं वही थी

वो रात चुपके से आज फिर आई थी,
हंसकर पूछ ती थी मुझसे,
"आज मिलोगे क्या...?"
शायद कभी नहीं, बोल के पलटी...वहाँ फिर भी अँधेरा था

एक ख़्वाब रात से फिर छिना था,
पूछता था मुझसे,
"अरे! होंश खो बैठी हो क्या...?"
हाँ! ख़्वाब ही तो हैं मेरे अपने...तुमसे तुमको चुराके छुपाना था.


No comments:

Post a Comment