Essence of me
Wednesday, October 22, 2014
बेशुमार ख़ामोशी
बेशुमार ख़ामोशी भर देते हैं बेज़ुबां से रिश्ते ज़िंदगी में,
क्या ख़ूब हो की ख़ामोश सन्नाटे सुनने का हुनर भी बक्श देता तू ए ख़ुदा.
लफ़्ज़ों में नही तो क्या, गुफ़्तगू ख़ामोशी में करते,
चाय की चुस्की को आँख दिखाते, पन्नो की सरगोशियों को शोर कहते.
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