तोह झट से कलम उठाई, और यादों का टोकरा भी,
नरम सी धुप भी आ कर बैठी थी मेरे पास.
महफ़िल पूरी थी, अदरक वाली चाय के प्याले के साथ.
दाग उसका मेरे कोरे पन्ने पर आज भी ताज़ा है.
वक्त के थमे पहिये से जान पड़ता है...
सब था, कॉपी-पेन, बीता और आने वाला कल,
पर कुछ यूँहीं
उँगलियों ने मेरा साथ छोड़ दिया.
क्या करूँ, अजीब तो है,
पर तुमसे ख्वाबों में मिलना भी मेरे लिए आसां नहीं है.
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