दर्द तो होता है तेरी बज़्म से उट्ठ कर जाते हैं जब भी,
फिर ख्याल आता है कि क्या लेके आए थे,
क्या साथ ले के जाना है...
अर्ज़ी तो डाली है...
अर्ज़ी तो डाली है...
इजाज़त मेले तो एक पोटली भर सामान लेजाना है...
थोड़े से शिकवे, थोड़ी शिकायत,
थोड़े से आंसू और भरपूर मोहोब्बत...
थोड़ी सी रातें, थोड़ी सी शामें
थोड़ा सा अम्बर, बस उतनी ही ज़मी...
सफ़ेद-सा एक नदी का पत्थर,
थोड़ा सा झरना, थोड़ा किनारा...
पैरों के नीचे से रेत भी थोड़ी सी,
बस मुट्ठी भर काफ़ी होगी...
और छोटी सी इक नाव भी देना,
थोड़ा सा समंदर साथ में बस होगा...
साइकल का पहिया, वो तीखी बेंत,
चन कितन्बें और थोड़ी सी मेज़...
ज़िद्दी बचपन थोडा सा,
थोड़ी सी अल्हड़ जवानी भी...
हाथ की लकीरों पर ऊँगली तुम्हारी,
थोड़ी शरारत, थोड़ी गुदगुदी...
थोड़ा सा सूरज, थोड़ा सा चंदा,
कोहरा थोड़ा और एक गहरा साया...
थोड़े से सपने, थोड़ी सी आशा,
थोड़ी सी हिम्मत, थोड़ा सा गुस्सा...
दांत से कुतरा नाख़ून वो थोड़ा,
मोती दो-चार, हिरा नहीं! उसे तुम रखना...
एक पीपल का पत्ता, गुलदस्ता गुलमोहर का,
थोड़ी सी डांट, थोड़ा सा लड़,
चादर पर फैली सिलवटें वो थोड़ी सी,
और थोड़ा सा आगोश तुम्हारा...
पोटली में बस इतना काफ़ी होगा,
साँस लेना के लिए...
हर रोज़ तुम्हे थोड़ा सा जीने के लिए...