Tuesday, April 6, 2010

नीम के पत्ते

झूमते-गाते, गुलटियाँ मरते...
हवा की मौजों पर सवारी करते,
एक-दूजे का हाथ थामे, आसमा को अलविदा कहते हैं
नरम सी धुप में अरमानो के पंख फैलाए,
एक नए सफ़र की शुरुआत करते हैं.

कभी-कबार, अकेला कोई भी दिख जाता है,
अपनी ही मस्ती में, बसंती रंग ओढ़े
धीमे से ज़मी को चुमते हैं.

नीम के पत्तों को कभी गिरते देखा है...
बेखबर होते हैं इस बात से
की ज़मीन तपती होगी
और छूता गरोंदा बहूत दूर

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