Wednesday, October 14, 2009

कल रात एक हवा के झोंके ने
मरी खिड़की पे दस्तक दी थी,
फिर इजाज़त भी मांगी कुछ देर ठेहेरने की.
अंजन सी उस शक्ल पर मैंने पर्दा कर दिया...
और जाते क़दमों की आहट भी सुनी.
पीछे बची खामोशी और घुर्राते चाँद से पूछा,
तो तुनक के बोले...
वो जो चली गई, तेरी रूह थी.

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